महाराष्ट्र में हार के बाद बैकफुट पर कांग्रेस, राहुल का हर दांव फेल, I.N.D.I.A. में दावेदारी होगी कमजोर?

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की हार ने INDIA गठबंधन के भविष्य और एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस के लिए यह शिकस्त इसलिए भी परेशान करने वाली है क्योंकि हरियाणा के बाद यह बीजेपी के खिलाफ उसकी लगातार दूसरी बड़ी हार है। इस हार के

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की हार ने INDIA गठबंधन के भविष्य और एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस के लिए यह शिकस्त इसलिए भी परेशान करने वाली है क्योंकि हरियाणा के बाद यह बीजेपी के खिलाफ उसकी लगातार दूसरी बड़ी हार है। इस हार के बाद बीजेपी विरोधी राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की धुरी बनने की कोशिशों को भी झटका लगा है। हालांकि, झारखंड में जेएमएम नीत गठबंधन की लगातार दूसरी जीत से विपक्ष को थोड़ी राहत मिली है।

महाराष्ट्र की हार से कांग्रेस सन्न

बावजूद इसके महाराष्ट्र में करारी शिकस्त की भयावहता के आगे झारखंड की जीत सिर्फ एक छोटी-सी उपलब्धि के रूप में ही देखी जा रही। इन चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस मुख्यालय में छाया माहौल इसी निराशा को दर्शाता है। यही वजह है कि वायनाड में प्रियंका गांधी वाड्रा की जबरदस्त जीत के बावजूद कार्यकर्ताओं में उस तरह का उत्साह नजर नहीं आया। झारखंड में जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत यह भी दिखाती है कि कैसे कांग्रेस इन दिनों क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत के सहारे ही अपनी नैया पार लगाने में सफल हो पा रही है।

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क्यों नहीं जाग रही मुख्य विपक्षी पार्टी

सवाल ये है कि लगातार शिकस्त के बावजूद कांग्रेस एक्शन मोड पर आती क्यों नहीं दिख रही? कांग्रेस आलाकमान एक तय स्ट्रक्चर में नजर आता है, जहां नामांकित पदाधिकारी हावी हैं। गांधी परिवार की वजह से पार्टी को भले ही थोड़ी राहत मिलती हो, लेकिन प्रतिस्पर्धी चुनावी राजनीति में, महाराष्ट्र की हार ने एक बार फिर 'गांधी-वाड्रा करिश्मे' की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

कांग्रेस कहां कर रही गलती

इसी साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतकर बीते एक दशक में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि, इसे लेकर भी सवाल उठते रहे हैं क्योंकि यह कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन था। इसमें कांग्रेस ने ज्यादातर वो सीटें जीतीं जो बीजेपी विरोधी दलों के खिलाफ लड़ी गई थीं। वायनाड सीट की बात करें तो राहुल गांधी के बाद अब प्रियंका गांधी ने उपचुनाव में यहां जीत दर्ज की। हालांकि, प्रियंका के वायनाड की सुरक्षित सीट चुनने को भी कांग्रेस के नेता इसी कमी के रूप में देखते हैं।

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राहुल गांधी की रणनीति फेल?

राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और झारखंड दोनों जगहों पर जिस तरह से प्रचार अभियान चलाया, वह स्थानीय कांग्रेस नेताओं को भी 'अटका हुआ रिकॉर्ड-प्लेयर' जैसा लगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अब भी 'संविधान बचाओ' और 'जाति जनगणना' जैसे मुद्दों पर अटका रहा। हालांकि, इन दोनों ही राज्यों में चुनाव मुख्य रूप से स्थानीय मुद्दों, सामाजिक समीकरणों और लोकसभा चुनाव के बाद रणनीतिक बदलावों पर लड़े गए थे।

बीजेपी ने महाराष्ट्र में कैसे किया करिश्मा

बीजेपी और आरएसएस ने जहां अपने चुनाव प्रचार में समन्वय बिठाया। 'बंटेंगे तो कटेंगे' जैसे नारों के जरिए जातीय विभाजन को रोकने की कोशिश की। मराठा आरक्षण आंदोलन के खिलाफ ओबीसी समुदाय के गुस्से को भुनाया और 'लाडकी बहिन' जैसी कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार किया। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी, पहले की तरह राफेल कैंपेन की तरह, 'संविधान' और 'जाति जनगणना' जैसे मुद्दों पर अटके रहे।

हेमंत सोरेन ने ऐसे बनाई जीत की राह

इसके विपरीत, झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले कैंपेन ने महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं, आदिवासियों की एकता को मजबूत करने और बीजेपी के 'घुसपैठियों' वाले मुद्दे के खिलाफ सहानुभूति बटोरने पर ध्यान केंद्रित किया। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में सिर्फ पांच दिन और झारखंड में चार दिन प्रचार किया, लेकिन वायनाड के लिए तीन दिन निकाले। महाराष्ट्र की 'एकजुट कांग्रेस' अब शिवसेना (UBT) और NCP (शरद पवार) की तरह ही बिखरी हुई नजर आ रही।

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महाराष्ट्र में कांग्रेस का हर दांव फेल

फिलहाल कांग्रेस के प्रवक्ता बेहद कठिन परिस्थितियों में भी राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के तरीके का बचाव कर रहे हैं। उन्होंने झारखंड और वायनाड में जीत का जश्न मनाते हुए महाराष्ट्र के नतीजों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। महाराष्ट्र चुनाव ने राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे की 'अडानी' को चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति को भी विफल कर दिया। पहले उन्होंने 'अडानी और मोदी एक हैं तो सेफ हैं' का नारा दिया और फिर धारावी पुनर्विकास योजना से अडानी परियोजना को हटाने का वादा किया। इसके साथ ही महाराष्ट्र-गुजरात में दूरी बढ़ाने की कोशिश की।

इंडिया ब्लॉक में कमजोर होगी कांग्रेस!

कांग्रेस नीत विपक्ष आगामी संसद सत्र में अडानी के खिलाफ अमेरिका में लगाए गए आरोपों को उठाने की तैयारी में है। लेकिन क्या महाराष्ट्र की हार उनके इस कैंपेन को बनाए रखने के लिए उनकी ऊर्जा और एकता को कम कर देगी, यह देखना बाकी है। विधानसभा उपचुनावों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बीजेपी के मुकाबले काफी खराब रहा है। कर्नाटक की तीनों सीटों पर जीत और मध्य प्रदेश में एक सीट बरकरार रखने के अलावा, राजस्थान, असम, पंजाब और गुजरात में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। इस तरह कांग्रेस का एक और चुनावी साल बिना किसी खास उपलब्धि के खत्म हो रहा है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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